Feeling Depressed ..........
कानपुर हत्याकांड पर मेरी कलम से -----------
हमारे जन्म - सम्बन्ध या रक्त - सम्बन्ध पीढ़ी दर पीढ़ी होते हैं, उन्हें सहेजना हमारा परम कर्त्तव्य है हमारे आचार, विचार, व्यवहार, संस्कार और धर्म को अगले आने वाले अपने कुल को सम्प्रेषित करना हमारा नैतिक दायित्व है, और हम सब इसका पूरी तन्मयता से निर्वहन भी करते हैं, जैसी नीव हम डालेंगे !!! रिश्तों की जड़ता भी उतनी मजबूत होगी।
इसके विपरीत मित्रता और प्रेम के शाश्वत सम्बन्ध हमारे निर्मित किये होते हैं, जिनमें भावनायें, सम्वेदनायें, आत्मीयता, प्रघाड़ता होती है जो क्षण - क्षण हमें खुशियाँ और शांति प्रदान करती हैं, और सुखद स्वप्नों की सैर कराती है , ये रिश्ते पूर्णतया ऐक्छिक होते हैं, दार्शनिक दृष्टि डालें तो समाज इन रिश्तों के लिये उदात्त कभी भी नही रहा, हमेशा समाज ने जाति, पंथ और आर्थिक स्तर में संबंधों को जकड़ना चाहा।
समाज के इस त्रुटिपूर्ण रवैये से प्रेम की सहजता, निर्मलता, पवित्रता, नैसर्गिता प्रभावित होती है और होती रहेगी। समाज में फैली हुयी सारी विपरीत परिस्थितियां विरोधाभास और गलत व्याख्याओं के कारण ही सामने आ रही हैं, समाज के डर से प्रेम को छिपाना सीमा तोड़ने का डर न जाने कितनी मासूमों की जिंदगियां तबाह कर रहा है। कृपया अपने विचार भी दें !!!!
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© ~~~ Vandana Dubey
—कानपुर हत्याकांड पर मेरी कलम से -----------
हमारे जन्म - सम्बन्ध या रक्त - सम्बन्ध पीढ़ी दर पीढ़ी होते हैं, उन्हें सहेजना हमारा परम कर्त्तव्य है हमारे आचार, विचार, व्यवहार, संस्कार और धर्म को अगले आने वाले अपने कुल को सम्प्रेषित करना हमारा नैतिक दायित्व है, और हम सब इसका पूरी तन्मयता से निर्वहन भी करते हैं, जैसी नीव हम डालेंगे !!! रिश्तों की जड़ता भी उतनी मजबूत होगी।
इसके विपरीत मित्रता और प्रेम के शाश्वत सम्बन्ध हमारे निर्मित किये होते हैं, जिनमें भावनायें, सम्वेदनायें, आत्मीयता, प्रघाड़ता होती है जो क्षण - क्षण हमें खुशियाँ और शांति प्रदान करती हैं, और सुखद स्वप्नों की सैर कराती है , ये रिश्ते पूर्णतया ऐक्छिक होते हैं, दार्शनिक दृष्टि डालें तो समाज इन रिश्तों के लिये उदात्त कभी भी नही रहा, हमेशा समाज ने जाति, पंथ और आर्थिक स्तर में संबंधों को जकड़ना चाहा।
समाज के इस त्रुटिपूर्ण रवैये से प्रेम की सहजता, निर्मलता, पवित्रता, नैसर्गिता प्रभावित होती है और होती रहेगी। समाज में फैली हुयी सारी विपरीत परिस्थितियां विरोधाभास और गलत व्याख्याओं के कारण ही सामने आ रही हैं, समाज के डर से प्रेम को छिपाना सीमा तोड़ने का डर न जाने कितनी मासूमों की जिंदगियां तबाह कर रहा है। कृपया अपने विचार भी दें !!!!
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© ~~~ Vandana Dubey
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