Saturday 2 August 2014


" प्रेम " मन को अलंकृत करता है। कनक सी चमक, अलौकिक दिव्यता और मन का आवरण है , प्रेम में रहना या जीना एक शाश्वत अतुल्य आनंद का अनुभव है, यह व्यक्तित्व की शुद्धतम स्थिति, जिसमें संवेदनायें - भावनायें एक दूसरे से जुड़ी रहती है, भावों को समझनेकी परख होनी चाहिये। प्रेम मौन भी हो तो दॄष्टि का सुख और स्पर्श का सुख का अपना अनूठा आनंद है जिसमें दोनों ही आनंदित होते हैं ,~~~~~~~"प्रेम " ईश्वर का दिया उपहार है चिन्तन हैं, मनुहार है , प्रेम को परिभाषित करना या गढ़ना बहुत कठिन है , स्पर्श का सुख ,दृष्टि का सुख , मिलन का सुख और वियोग का सुख सारे रसों से सराबोर है प्रेम। सावन की पहली बूंदों जैसा ~~~~~

प्रेम शब्द जब आचरण से मंडित होता है तो वह जप और मंत्रों की शक्ति प्राप्त कर लेता है ..हमारे विचार ही हमारे शब्द बनते है ... शब्दों से भाव पनपता है भाव ही कर्म और प्रेम की रचना करते हैं ह्रदय के निर्मल मन से जो सुर निकलेंगे वे अतभुत गगनगामी तुल्य होंगे !!!

मुझे तो प्रेम प्रकृति के हर रंग में दिखता है " तुम्हारे प्रेम को पढ़ने की सामर्थ्य मुझमें है , बस तुम मूक रहो प्रशांत सागर से, मेरी शब्द लहरियाँ तरंगों सी, पूनम - अमावस के ज्वार - भाटे सी, क्षण - क्षण तुमसे टकराकर, आंदोलित कर तुम्हें गतिमान करते रहेंगी और तुममें प्रेम को संचारित करते रहेंगी। " ......:))))

===== © वंदना दुबे
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Photo: " प्रेम " मन को अलंकृत करता है। कनक सी चमक, अलौकिक दिव्यता और मन का आवरण है , प्रेम में रहना या जीना एक शाश्वत अतुल्य आनंद का अनुभव है, यह व्यक्तित्व की शुद्धतम स्थिति, जिसमें संवेदनायें - भावनायें एक दूसरे से जुड़ी रहती है, भावों को समझने की परख होनी चाहिये। प्रेम मौन भी हो तो दॄष्टि का सुख और स्पर्श का सुख का अपना अनूठा आनंद है जिसमें दोनों ही आनंदित होते हैं ,~~~~~~~"प्रेम " ईश्वर का दिया उपहार है चिन्तन हैं, मनुहार है , प्रेम को परिभाषित करना या गढ़ना बहुत कठिन है , स्पर्श का सुख ,दृष्टि का सुख , मिलन का सुख और वियोग का सुख सारे रसों से सराबोर है प्रेम। सावन की पहली बूंदों जैसा  ~~~~~

प्रेम शब्द जब आचरण से मंडित होता है तो वह जप और मंत्रों की शक्ति प्राप्त कर लेता है ..हमारे विचार ही हमारे शब्द बनते है ... शब्दों से भाव पनपता है भाव ही कर्म और प्रेम की रचना करते हैं ह्रदय के निर्मल मन से जो सुर निकलेंगे वे अतभुत गगनगामी तुल्य होंगे !!!

 मुझे तो प्रेम प्रकृति के हर रंग में दिखता  है " तुम्हारे प्रेम  को पढ़ने की सामर्थ्य मुझमें है , बस तुम मूक रहो प्रशांत सागर से, मेरी शब्द लहरियाँ तरंगों सी, पूनम - अमावस  के ज्वार - भाटे सी, क्षण - क्षण तुमसे टकराकर, आंदोलित कर तुम्हें गतिमान करते रहेंगी  और तुममें प्रेम को संचारित  करते रहेंगी। "  ......:)))) 

===== © वंदना दुबे

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