Wednesday 20 August 2014

मन झूम - झपाक - झमझम
झंकृत हो उठता है
" झिंझोटी " की ताने
गुनगुनाता है ......
जब तुम मुझे "सुंदर " कहते हो
अपने पे ग़ुमान हो जाता है

सर्वांग अलंकृत हो जाते हैं ।


बिहान भये नित
निर्मल बयार बहती
उषा के आँचल फैलाते ही
झरोखों से,,,,,,

उदय की सुनहरी रश्मियाँ
मेरे मुख मण्डल को चूमती थी
मुझे सहलाती थी
जगाती थी ,,,,,,,,

पर इन दिनों
शीतल - शीत ऋतु में
मोटे कोहरे की सफ़ेद चादरों ने
मेरे अरुण को जाने कहाँ छुपा लिया है
अरुणिमा खो गयी कहीं
ना जाने कब लौटेगी ,,,,,,,

,,,,, वन्दना दुबे ,,,,,,

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