जीवन के नितांत एकांत क्षणों में
तुम प्रेम रंग के
बादल बन कर बरसे
भिगो गये मन की
परिधि को .....
छा गये विस्तृत मन पर ....
आज धकेलना चाहती हूँ तुम्हे बाहर
तो तुम्हारे निकलने को कोई कोना नही
आवृत ही आवृत ....
वंदना दुबे ...
तुम प्रेम रंग के
बादल बन कर बरसे
भिगो गये मन की
परिधि को .....
छा गये विस्तृत मन पर ....
आज धकेलना चाहती हूँ तुम्हे बाहर
तो तुम्हारे निकलने को कोई कोना नही
आवृत ही आवृत ....
वंदना दुबे ...
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