Sunday 16 May 2021

 



चैत की दोपहरी

में बह रही
इन दिनों
निर्बाध हवायेँ ----
तपिश भरे दिनों में
चिलचिलाती पवन संग
फिर मुस्काई
आँगन में,
गुलमोहर कलियाँ
दूर तक फैला सिन्दूरी बिछौना
स्वप्निल सा आभास
निहारे अपलक नयन -----

वसुधा के रंग अनेक

 वसुधा के रंग  अनेक 




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वैशाख  की तपिश में 

पीत हुए पात - पल्लव 

बड़े दिवस  हुये

सिकुड़ गयीं निशायें ----

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कुहू-कुहू कोयलिया  करती 

इठलाती फिरती अमुआ 

की डाल - डाल  पर 

मालती  के पुष्प-गुच्छ 

सुंदरता देते  और देते  झुकने का सन्देश ------ 

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तारुण्य आया 

अमलतास (स्वर्णपुष्पी ) पर 

मादक हुआ वन - उपवन 

कोरोना -काल में 

सिंदूरी परिधान में 

गुल मोहर भी मुस्काया -----

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लगने- लगा मुझे 

जलती उमस भरी गरमी में 

कोई ठंडी हवा का झोंका  

नन्ही सावन की बूंदों सा 

टपका माथे पर,

भीगा मन मेरा भी 

देख "वसुधा के रंग अनेक"  ~~~ 

Wednesday 20 May 2020

लाकडाउन -४ 

डर के आगे जीत है , विगत ६० दिनों से हम सब एकाकी जीवन जी रहे हैं , इस दौर में विचलित होना स्वाभाविक है |  धैर्य , दूरदर्शिता , साहस  से आने वाली हर चुनौती का सामना करना होगा हमें ----  समग्रता , संतुलन, सहजता और करुणा की पराकाष्ठा से बड़ी से बड़ी महामारी ( कोविड -१९ ) से हम एकजुट हो दूर रहकर सामना कर लेंगे |
                                                    जीवन असंख्य  संभावनाओं और प्रेरणाओं  की खदान है ,इन दिनों  हमारी आत्मा में सकारात्मकता  , आत्मसंयम,  अनुशासन , मननशीलता और आध्यात्म का जो बीज रोपित  हुआ है यूँ लगता है मानों दो माह का कोई देवीय अनुष्ठान किया हो हमने ----   इन अनुभवों को संजो हमें आजीवन जीना है ---  विषम समयाविधि में हमने खूब आत्ममंथन और आत्मचिंतन किया है ,  धनात्मक सोच और सात्विकता को अंगीकार कर हमने एक आनंददायी जीवन जिया है |

मन  जब दुखी होता है तो दोनों  (+ - )  तरह के विचार हमें व्यथित करते हैं , दिन लम्बे और लम्बे लगते हैं वैसे भी जेठ ऋतु में रातें छोटी होती हैं , ये समय अस्थायी है हताशा छोड़  हौसला रख संकल्पित होना होगा | परीक्षा की घड़ी सा ये काल बिताना होगा हंसकर तभी हम अपने मन में को "कोरोना"  से लड़ने लायक बना पाएंगे |

वसुधा संवर रही है इन दिनों हम देख रहे हैं , इस भीषण गर्मी में अमलतास की झालरें और गुलमोहर के सुर्ख आच्छादित  तरुओं से हमें प्रेरित होना चाहिए , हमेशा रंगों और    उल्लास से भरे-भरे से दृष्टिगत होते हैं , अवनि  और अम्बर की अठखेलियां प्रत्युषा से सांयकाल तक विविध इंद्रधनुषी छटा बिखेरती है , पाखियों  की कतारे, कोलाहल , कृन्दन  इन संग ये आनंददायी  क्षणों  को आत्मसात कर हमारी वेदना कम हो सकती है | प्रकृति प्राचीन काल से ही सहायक रही है हमारा मनोबल बढ़ाने में बस उसके सुरों , रंगो और अतर  को पहचानना होगा, अरण्य संस्कृति और भारतीयता अपनाने की पुरज़ोर प्रयत्न करना होगा हमें विषाद से बचने के लिए |

 हमें स्वयं को आत्मक्रेंद्रित करने , उष्मा , उत्साह,  आध्यात्म और  पठन के लिए सबसे अनुकूल समय है इन दिनों ---- अभी भरी हुयी ये संचित ऊर्जा विपरीत परिस्थितियों में सम्बल प्रदान करेगी और हमें आरोग्यता , सात्विकता और एक ओज से हमारे मानसपटल को देदीप्यमान करेगी | सारा ब्रम्हांड " कोविद १९ " की संजीवनी ढूढ़ने में तत्पर है , सफलता  अवश्य मिलेगी , एक नयी सुबह के इंतज़ार में हैं हम सब जो निश्चित ही आएगी | डर आगे जीत है ---- जीतेंगें हम ----- |||----

Sunday 3 May 2020



लॉकडाउन
चहके पंछी
महकी वसुधा
अनुपम विस्तृत -व्योम
लॉकडाउन में !
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निर्मल पुण्यसलिला
झरते रजत - निर्झर
स्वच्छ पथ
अलौकिक सागर
पुलकित कानन
लॉकडाउन में !
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रिश्तों का आभास
व्यंजनों की मिठास
गहरी तन्मयता
बालहठ
केरम - पत्तों- लूडो के
हास- परिहास
रामायण - महाभारत
इस लॉकडाउन में !

Lockdown Pictures | Download Free Images on Unsplashजिंदगी न होगी पहले सी कभी -----

न जाने मुझे क्यूँ
यक़ीन  हो चला है ,
जिंदगी न होगी पहले सी कभी -----
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वो मेले के झूले
ब्याह की  सजावटें
सांध्य संगीत सभाएं
मित्रों के कहकहे !
जिंदगी न होगी पहले सी कभी -----

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मंदिरों की कतारें
करतल ध्वनियों की अनुगूंज
संतो का सानिध्य !
पावों की थिरकन
जिंदगी न होगी पहले सी कभी -----


कुदरत की साज़िशें
मंदिर बंद मदिरालय खुले
जीविका की क्षति
जीवन संघर्ष ख़त्म
एक अज्ञात भय
गुमसुम मन
काल की अनंत पगडण्डी पर
अविराम जीवन क्रिया
 जिंदगी न होगी पहले सी कभी -----


Thursday 12 March 2020

 पाषाण का दुःख “
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युगों-युगों से
 तप-तप कर 
आंधी -पानी -तूफ़ान 
सह-सह कर 
लोगों का प्यार न पाया 
पाषाण ही कहलाया -------

कभी विभ्राट गिरि 
उत्तुंग हिमशिखर 
कभी विंध्याचल का 
अपलक दर्शन 
नदियों का तात होकर भी 
लोगों का प्यार न पाया 
पाषाण ही कहलाया -------

सरिता तट पर 
शिला बना 
लोगों ने  शीश नवाया 
कभी 
बहुरंगी रत्न बन 
बहुतों का भाग्य जगाया 
आत्मरत्न न बन पाया 
छू -छू  सबने  बहुत सराहा 
पर 
उपमा पाषाणवत की ही मिली 
लोगों का प्यार न पाया ——

रेत बना बिखरा 
और बिखरता चला गया 
नन्हों से हाथों से 
बस 
फिसलता चला,
पाषाण ही कहलाया ------

~~ वंदना दुबे ~~
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मैं बसंती पवन  हूँ !


मैं बसंती पवन  हूँ, 
जाती ठण्ड की 
कुनकुनी धूप  लिए 
फिरूं मैं 
इधर- उधर 
बड़ी मनचली सी---- 
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पीत वसुधा 
पीत कुसुम 
तरुण आम्र की मंजरियाँ 
को करती शोभित 
खिली चमचमाती सब 
मैं बसंती पवन   हूँ -----

कोमल -मधुर हास -विलास 
"बसंत" का आलाप करती 
नव -तरंग छुई -मुई सी 
चपल मैं 
पुलकित करती  सृष्टि 
मैं बसंती पवन  हूँ ------

~वंदना दुबे ~
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