लाकडाउन -४
डर के आगे जीत है , विगत ६० दिनों से हम सब एकाकी जीवन जी रहे हैं , इस दौर में विचलित होना स्वाभाविक है | धैर्य , दूरदर्शिता , साहस से आने वाली हर चुनौती का सामना करना होगा हमें ---- समग्रता , संतुलन, सहजता और करुणा की पराकाष्ठा से बड़ी से बड़ी महामारी ( कोविड -१९ ) से हम एकजुट हो दूर रहकर सामना कर लेंगे |
जीवन असंख्य संभावनाओं और प्रेरणाओं की खदान है ,इन दिनों हमारी आत्मा में सकारात्मकता , आत्मसंयम, अनुशासन , मननशीलता और आध्यात्म का जो बीज रोपित हुआ है यूँ लगता है मानों दो माह का कोई देवीय अनुष्ठान किया हो हमने ---- इन अनुभवों को संजो हमें आजीवन जीना है --- विषम समयाविधि में हमने खूब आत्ममंथन और आत्मचिंतन किया है , धनात्मक सोच और सात्विकता को अंगीकार कर हमने एक आनंददायी जीवन जिया है |
मन जब दुखी होता है तो दोनों (+ - ) तरह के विचार हमें व्यथित करते हैं , दिन लम्बे और लम्बे लगते हैं वैसे भी जेठ ऋतु में रातें छोटी होती हैं , ये समय अस्थायी है हताशा छोड़ हौसला रख संकल्पित होना होगा | परीक्षा की घड़ी सा ये काल बिताना होगा हंसकर तभी हम अपने मन में को "कोरोना" से लड़ने लायक बना पाएंगे |
वसुधा संवर रही है इन दिनों हम देख रहे हैं , इस भीषण गर्मी में अमलतास की झालरें और गुलमोहर के सुर्ख आच्छादित तरुओं से हमें प्रेरित होना चाहिए , हमेशा रंगों और उल्लास से भरे-भरे से दृष्टिगत होते हैं , अवनि और अम्बर की अठखेलियां प्रत्युषा से सांयकाल तक विविध इंद्रधनुषी छटा बिखेरती है , पाखियों की कतारे, कोलाहल , कृन्दन इन संग ये आनंददायी क्षणों को आत्मसात कर हमारी वेदना कम हो सकती है | प्रकृति प्राचीन काल से ही सहायक रही है हमारा मनोबल बढ़ाने में बस उसके सुरों , रंगो और अतर को पहचानना होगा, अरण्य संस्कृति और भारतीयता अपनाने की पुरज़ोर प्रयत्न करना होगा हमें विषाद से बचने के लिए |
हमें स्वयं को आत्मक्रेंद्रित करने , उष्मा , उत्साह, आध्यात्म और पठन के लिए सबसे अनुकूल समय है इन दिनों ---- अभी भरी हुयी ये संचित ऊर्जा विपरीत परिस्थितियों में सम्बल प्रदान करेगी और हमें आरोग्यता , सात्विकता और एक ओज से हमारे मानसपटल को देदीप्यमान करेगी | सारा ब्रम्हांड " कोविद १९ " की संजीवनी ढूढ़ने में तत्पर है , सफलता अवश्य मिलेगी , एक नयी सुबह के इंतज़ार में हैं हम सब जो निश्चित ही आएगी | डर आगे जीत है ---- जीतेंगें हम ----- |||----