Tuesday 2 April 2013




गोधुली की बेला 

सुरमई सावरी साँझ
गोधुली की बेला
और फ़िर मन अकेला ....
केसरिया रश्मियों की
सुनहरी चूनर ओढ़ ली मैने
जैसे तुम्हें स्पर्श आलिंगन कर लिया मैने ......
अस्त होता प्रभाकर
नदी का किनारा
अन्जुली में जल भर में
तुम्हें खोजना चाहा !!
तुम संग मृदुल क्षणों को आत्मसात करना चाहा !!
अन्तरात्मा में वही कश्मकश ......
और फिर मन अकेला...
उद्वेलित मन
चंचल चितवन
धीमे से जो अचानक उठी
मेरी नज़र
नर्म - गर्म सा स्पर्श तुम्हारा

*** वंदना दुबे ***
काया हो गयी कुंदन
तीव्र हुई स्पंदन
की अश्रु छलक पड़े
अंगुलियों में समेट लिया तुमने
मोतियों की तरह ....

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