नीलगिरि के विराट
तरुओं से झांकते
कार्तिक पुरनम के
मोहक मयंक ......
अपनी रजत
धवल सौम्य किरणों से
परिष्कृत करते
विस्तृत धरा को .........
...........
तुम संग आचमन करती
शीतल शशि किरणों का .....
हाथों में हाथ थामे थामकर
मेरी हथेली क्यू वो .......
कुछ सोचता सा रह गया .........
............
वक़्त कुछ ऐसा रुका
की बस रुका सा रह गया
नैनों में अश्रु भर
नयन से नयन को नमन
कर उसने बस इतना कहा
प्रारब्ध की लक़ीरों से
मैं कहाँ चला गया था ......
..............
की देखते ही देखते
सहसा एक नयी
हरी बेल ऊग आयी
और छेड़ दी हमने
" रागेश्वरी " की ताने
राग - आलाप
मधुरमय चिर रात्रि ......
....वन्दना दुबे ......
तरुओं से झांकते
कार्तिक पुरनम के
मोहक मयंक ......
अपनी रजत
धवल सौम्य किरणों से
परिष्कृत करते
विस्तृत धरा को .........
...........
तुम संग आचमन करती
शीतल शशि किरणों का .....
हाथों में हाथ थामे थामकर
मेरी हथेली क्यू वो .......
कुछ सोचता सा रह गया .........
............
वक़्त कुछ ऐसा रुका
की बस रुका सा रह गया
नैनों में अश्रु भर
नयन से नयन को नमन
कर उसने बस इतना कहा
प्रारब्ध की लक़ीरों से
मैं कहाँ चला गया था ......
..............
की देखते ही देखते
सहसा एक नयी
हरी बेल ऊग आयी
और छेड़ दी हमने
" रागेश्वरी " की ताने
राग - आलाप
मधुरमय चिर रात्रि ......
....वन्दना दुबे ......
No comments:
Post a Comment