Monday 1 April 2013

प्रेम 

  प्रेम ईश्वर का दिया उपहार है चिन्तन हैं, मनुहार है प्रेम को परिभाषित करना या गढ़ना बहुत कठिन है , स्पर्श का सुख ,दृष्टी का सुख , मिलन का सुख और वियोग का सुख सारे रसों से सराबोर है प्रेम सावन की पहली बूंदों जैसा ,सर्दियों की गुलाबी ठंडक जैसा ,बसंती बयारों जैसा महकी पुरवाई ओस के शबनम जैसा इसकी व्याख्या नामुमकिन है , प्रेम दर्शन ,मनोविज्ञान , संगीत , सुरों की तान ,सृजन , त्याग, अनंत ,अनामय , सागर जैसा वर्णित करने के लिये शब्द कम है, प्रेम के अनगिनत आयाम कभी मुस्कान कभी टीस जो प्रेम को पालता है आखों में अश्रु और स्वप्न सा बसाता है वही प्रेम को समझ पाता है जो एक शाश्वत सत्य है मरणोपरांत भी उसकी ख़ुशबू जगत महसूस करता है ....:)))) —

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