Saturday 2 August 2014


मेरे मनहर ..!!!
जब कभी आप
नींद में मुझे
बिना मिले ही
बिना देखे ही
छू जाते हो.........

कपकपा जाती हूँ मैं
अपने हीं चादर में उलझकर .........
ना जाने कितने
सतरंगी सपने
मेरे नयनों में
समा जाते हैं........

मुझे भी पता है
उन सपनों की
कोई मंजिल नहीं है...........

ये रिश्ते ,
पानी में चलने जैसे
पवन में उड़ने जैसे
धरती अम्बर क्षितिज से
दृष्टि गोचर अंतहीन
सागर की लहरों का नाद जैसे ~~~~~~

.......

नींद खुलते ही
तुम्हारी छबि विलुप्त
हो जाती है
नयन डबडबा जाते हैं.......

काश !!!
ऐसा हो पाता और
हम दोनों के मध्य होती
मौन अभिव्यक्ति ……

-- © --
वंदना दुबे —
Photo: मेरे मनहर ..!!! 
जब कभी आप 
नींद में मुझे 
बिना मिले ही 
बिना देखे ही 
छू जाते हो.........

कपकपा जाती हूँ मैं
अपने हीं चादर में उलझकर .........
ना जाने कितने 
सतरंगी सपने 
मेरे नयनों में 
समा जाते हैं........

मुझे भी पता है
उन सपनों की
कोई मंजिल नहीं है...........

ये रिश्ते ,
पानी में चलने जैसे 
पवन में उड़ने जैसे 
धरती अम्बर क्षितिज से 
दृष्टि गोचर अंतहीन 
सागर की लहरों का नाद जैसे ~~~~~~

.......

नींद खुलते ही 
तुम्हारी छबि विलुप्त 
हो जाती है 
नयन डबडबा जाते हैं....... 

काश !!!
ऐसा हो पाता और 
हम दोनों के मध्य होती 
मौन अभिव्यक्ति ……

-- © --
वंदना दुबे —

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