Monday 6 October 2014

संगीत विधा और स्वर शक्ति ~~~~ :))))



=====================

संगीत की उत्पत्ति हम सामवेद से मानते हैं। वैदिक ऋचाओं की लयबद्धता इस बात का घोतक है , पौराणिक युग से हम नाद को ब्रम्ह की संज्ञा देते हैं। गन्धर्ववेद में सात स्वर बताएं हैं। इन्ही स्वरों के संगम से राग - रागनियों का स्वरूप निर्मित हुआ। ऐसा कोई राग नही जिसमे सा ( षडज ) न हो।
किंवदंती भी है ! कि सर्वप्रथम ब्रह्मा ने सरस्वती और सरस्वती ने नारद जी को संगीत की शिक्षा दी।
इसी तरह हम शिव को नृत्यदेव ( नटराज ) कहते हैं। गायन, वादन, नृत्य तीनों कलाओं का संगम "संगीत " कहलाता है।

संगीत विचारों, संवेगों और भावनाओं की लिपि है , सुख - दुःख, प्रेम, जय, ओज, भक्ति , प्रकृति श्रृंगार सभी रसों में रचा - बसा है संगीत ! एकांत क्षणों में हम सुमधुर संगीत सुन दीन - दुनिया भुला देते हैं। और तनाव से भी मुक्त भी होते हैं। सब पर संगीत का प्रभाव भिन्न - भिन्न होता है गीत हमें सरलता, सौम्यता और शांति प्रदान करते है। कर्ण प्रिय संगीत उत्प्रेरक का कार्य करता है। संगीत के बिना जीवन नीरस निर्जीव सा। संगीत का मुख्य ध्येय आनंद, शांति प्रदान करना और तनाव से मुक्ति।

हमारे संग - संग धरा भी इसी धारा में बहती है। सरिता का कल -कल, पाँखियों का कलरव, भँवरे की गुंजन, सुबह की लालिमा, सन्धि - प्रकाश की बेला, कानन की हरियाली , पर्वतों की ऊचाईयां , सघन वन की शांति, पत्तों की चरमराहट, कुंज की सुंदरता और सुगंध अपने निराले रूप में संजोती है हमारे संगीत को !!!

सामवेद, गन्धर्व वेद के साथ - साथ आयुर्वेद विधा ने भी संगीत को संजीविनी कहा है। ध्वनि द्वारा ही संगीत की उत्पत्ति हम मानते हैं, मानव शरीर का मष्तिष्क तंत्रिका - तंत्र से बुना हुआ है, और पूरे शरीर से व्यापक रूप से जुड़ा हुआ है सारे राग - अनुराग, आलाप, ताने गीत एवं वाद्य यन्त्र हमारे दिमाग को प्रभावित कर चुंबकीय असर डालते हैं, जिसे हम " संगीत - चिकित्सा " भी कह सकते हैं।

"स्वस्थ शरीर निरोगी काया" मूलमंत्र है जीवन की ~~~~ सात स्वरों का जादू से हृदय रोगी के साथ - साथ मानसिक और मधुमेह के रोगियों में भी सुधार देखा गया है।

राग केदार, भैरवी, शिव रंजनी, ललित ( दोनों मध्यम का सुमधुर संयोजन ) रागों का चमत्कारिक एवं सकारात्मक प्रभाव देखने में आया है। जो रक्त चाप कम करते हैं। दुःख कम करने के लिए भैरव, रामकली , हिंडोल राग प्रभावी हैं। जो हॉर्मोन्स को संचारित करते हैं।

शरीर में पाये जाने वाले मैग्नीशियम, कैल्शियम, ज़िंक, मिनरल्स , लौह तत्व और भी बहुत सारे यौगिक तत्वों को सक्रिय कर उत्तेजित करते हैं जिनसे एंटीऑक्सीडेंट्स निकलते हैं जो हमारे शरीर के रोग को कम करते हैं।

मानव के साथ -साथ प्राणियों और खेतों में भी इसका विशेष प्रभाव देखा गया। गायों में मधुर संगीत से २०% का इजाफा दूध देने में और फसलें लहलहायीं।

शास्त्रीय संगीत में रागों के गायन वादन का समय निर्धारण प्राचीन काल से अपनी कला बिखेरे हुए है।
भोर भये जहाँ भैरव, सारंग, रामकली,दुर्गा , गुणकली ने जादू बिखेरा। तो दोपहर में आशावरी, जौनपुरी, हिंडौल, अल्हैया बिलावल,रागेश्री, पूरिया धनाश्री, पटदीप, मधुवंती, वही!!! गोधूलि की बेला में यमन कल्याण, यमन श्याम, कल्याण का अपना निराला ही आनंद है।
निशाकालीन रागों में मालकौंस, दीपक, ललित, बसंत, भीम पलासी, सोहणी, भूपाली की ताने अपना जादू बिखेरती हैं। भूपाली सौम्यता से भरपूर राग सुनकर मन शांत होता है। और मन स्वस्थ भी होता है।
मेरे प्रिय राग पीलू, कलावती , मालकौंस, ललित, जैजैवन्ती, राघेश्री , बाघेश्री, भैरवी जिन्हे मैंने सितार पर खूब बजाया कॉलेज के दिनों में !!! उनमे से " भैरवी " सर्वकालिक रागों में आता है। संगीत द्वारा चिकित्सा को प्रोत्साहन मिलना चाहिए। मानसिक रोगियों को ठीक करने में में बेहतर परिणाम सामने आएं हैं। समस्त मित्र जनों से विनय है कि अपनी टिप्पणी अवश्य दें।

--------- © वंदना दुबे

No comments:

Post a Comment