Wednesday 20 August 2014

हे दिवाकर देव !!!

शिशिर निशा काल का अंत
गहन गिरि कानन
और उपवन में
श्यामल गगन को 
अपने तम और प्रकाश पुंजों से
परिष्कृत कर दो
हे दिवाकर देव !!!


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प्राची के महाद्वार से
सवेरे - सवेरे
सूर्य का रथ तेज़ी से निकले
पवन सहलाये
कपोल "प्रियतम " के
स्वप्न स्नेह के टूटे
तुम्हारी किरणों से
सुन्दर सुकुमार देह
खोले नयन
तुम्हारी आभा
से सुदूर सागर किनारे
हे दिवाकर देव !!!

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समीर तेरे प्रतिकर्षण से
मैं तुम्हें छू लूंगी
उनकी मध्धम - मध्धम
मलयानिल महक
का अभिसार कर लूँगी
" प्रियतम"
को आत्मसात कर लूँगी !
आरम्भ से ही
गोचर होकर रहे अगोचर ........


=== वंदना दुबे =

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