हे दिवाकर देव !!!
शिशिर निशा काल का अंत
गहन गिरि कानन
और उपवन में
श्यामल गगन को
अपने तम और प्रकाश पुंजों से
परिष्कृत कर दो
हे दिवाकर देव !!!
---------
प्राची के महाद्वार से
सवेरे - सवेरे
सूर्य का रथ तेज़ी से निकले
पवन सहलाये
कपोल "प्रियतम " के
स्वप्न स्नेह के टूटे
तुम्हारी किरणों से
सुन्दर सुकुमार देह
खोले नयन
तुम्हारी आभा
से सुदूर सागर किनारे
हे दिवाकर देव !!!
-----------
समीर तेरे प्रतिकर्षण से
मैं तुम्हें छू लूंगी
उनकी मध्धम - मध्धम
मलयानिल महक
का अभिसार कर लूँगी
" प्रियतम"
को आत्मसात कर लूँगी !
आरम्भ से ही
गोचर होकर रहे अगोचर ........
=== वंदना दुबे =
शिशिर निशा काल का अंत
गहन गिरि कानन
और उपवन में
श्यामल गगन को
अपने तम और प्रकाश पुंजों से
परिष्कृत कर दो
हे दिवाकर देव !!!
---------
प्राची के महाद्वार से
सवेरे - सवेरे
सूर्य का रथ तेज़ी से निकले
पवन सहलाये
कपोल "प्रियतम " के
स्वप्न स्नेह के टूटे
तुम्हारी किरणों से
सुन्दर सुकुमार देह
खोले नयन
तुम्हारी आभा
से सुदूर सागर किनारे
हे दिवाकर देव !!!
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समीर तेरे प्रतिकर्षण से
मैं तुम्हें छू लूंगी
उनकी मध्धम - मध्धम
मलयानिल महक
का अभिसार कर लूँगी
" प्रियतम"
को आत्मसात कर लूँगी !
आरम्भ से ही
गोचर होकर रहे अगोचर ........
=== वंदना दुबे =
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