Monday 6 October 2014

खुशियाँ स्थायी नही होती !!! कुछ समय के लिए हमें भावविभोर करने आती है जीवन में, हमारी खुशियाँ इस बात पर भी निर्भर कि हम कितने एकाग्रचित्त हैं, कोई बाहरी बातें या परिस्थितियां हम को प्रभावित न कर पायें। 
बचपन में हम सहृदय और कोमल मन के होते थे। नभ की विशालता, इंद्रधनुषी रंग , देवदार की छटा, निर्झर का मधुर नाद, उड़ती पतंग हमें रोमांचित और उल्लासित करते थे, अब हम दिनोदिन जड़ होते जा रहे हैं, लगता है सब देखा है परिपक्क्वता हम पर भारी। कोमल मन कठोर हो रहा शनैः शनै। समाज और परिस्थितियों से जूझकर हम और भी ज्यादा जड़ हो गए शायद !!!
हमारा शैशव हमसे दूर भागा जा रहा है। इसे कैसे रोकें????
स्व से लगाव निष्कपट, वास्तविकता से जुड़े रहना, अध्यात्म से लगाव ये बेहतर विकल्प है पलायन रोकने के। मुख्य है अपनी राह तलाश करना जुड़ाव, प्रेम, समर्पण, अपने कार्य के प्रति रूचि ये सभी अनवरत चलने वाली प्रक्रियाएं है एक चेतना और शक्ति हमारे साथ आजीवन चलती रहती है उसे अनुभव करना और सही संतुलन भी जरुरी है। मेरा अथक प्रयास यही रहता है कि किसी " एक चेहरे " पर मुस्कराहट बिखेर सकूँ ....

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