Monday 6 October 2014

!! साहित्य !! __/\__
===========
साहित्य का भी अपना निराला संसार है। न जाने कितनी विधाएँ, कितना ज्ञान, कितने अनुभव, कितना इतिहास, कितने प्रयोग ~~~ का अथाह सागर है। कहीं भाषा तो कहीं इतिहास हमें भाव- विभोर कर देता है | कथानक या रचनाकार की रचना तभी सफलता के कदम चूमती है, जब उसे उचित सम्मान या माहौल मिलें। वैसे भी हमारा भारतवर्ष प्राचीन काल से साहित्य और संस्कृति की खदान रहा है। भारतीय समाज की वास्तविकता का असल चित्रण हमें "प्रेमचंद" की रचनाओं में दृष्टिगत होता है ऐसा कोई पहलू नही जो उनकी नज़रों से ओझल हुआ हो। वहीँ महादेवी जी ने नारी की छवि के हर रूप पर प्रकाश डाला है, फणीश्वर नाथ रेणू, निरालाजी, प्रसाद जी इन सभी ने समाज और प्रकृति को अपनी लेखनी की भागीरथी से हम सबको डुबकियां लगवायी हैं, इन्हें जितना भी पढ़ो उतना कम। शब्दों की मिठास मन में शहद घोलती है। और पाठको की आत्मा में विचार - पुंज जगाती है।
ह्वेनसांग जब भारत आये थे तो कई वर्ष भारत में बिताने के बाद कई विश्व- विद्यालय में अध्ययन कर यहाँ की संस्कृति और साहित्य को अपने साथ स्वदेश ले गये थे ।
मुझे भी अपने संस्कृति, साहित्य, वेद, पुराणों, भगवत गीता रामचरितमानस से विशेष लगाव है। तुलसीदास जी ने आदर्श का अलख जगाया तो वही "प्रेमचंद" जी ने यथार्थ से परिचय कराया उनका साहित्य मर्मभेदी है, जो आपके नैनों को भिगो देता है। अच्छा साहित्य समाज को एक सकारात्मक मोड़ देता है | प्राचीन साहित्यकारों जैसी भाषिक सरंचना और अभिव्यक्ति कहीं दिखाई नही देती, जबकि उन दिनों सुविधाएं भी इतनी नही थी लेखन कार्य एक गहन - तपस्या स्वरूप था। किताबे अपना अनुभव बांटती हैं बाल्यकाल से पुस्तकें मेरी अभिन्न मित्र रही हैं। हम जितना भी पढ़ें, ये जिज्ञासा और पिपासा बढ़ते ही जाती है।

No comments:

Post a Comment