मेरी कविताएँ
Monday 6 October 2014
भोर - भये
सावन भादों बीत
गये अब
अरुणोदय की अरुणाई
छिटकती
खप्परों की काई पर
यूं लगा मुझे
बीते बरखा की
सुध ले रही हो
जैसे !!!
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