Sunday 14 April 2013


chah

"मेरे मन में छुपी
मासूम सी कली
चटक नैन -नक्शो वाली
उम्मीदों से लबालब
हरदम थिरकने को आतुर
रोम - रोम बहे सुरसरिता
मन तरंगो से तरंगित
कभी आभास नही होता
कि अंदर कितनी
तेज़ बह रही
नित -नूतन जगहों को
देखने कि लपक- ललक
जानने कि जिज्ञासा
कामनाओं से भरपूर
मोह्पाश में जकड़ी हुई
पैबंदों में बंधी हुयी
स्मृतियों से निकलने
को मचलती हुयी .....
मेरे मन में छुपी
 ....

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