Monday 1 April 2013


भागीरथी 

शिव- शीर्ष से उतरती 
 हिमपुत्री भागीरथी 
हिमकुंडो से फिसलती 
कल -कल करती 
जड़ी -बूटियाँ समेटती 
पहाड़ो से फांदती 
धुआंधार सी बहती ......
नयनाभिराम अंचल तेरे 
बरबस मोह लेती अल्ल्हड़ता तेरी 
खीचे अपलक चपलता तेरी 
मनभावन होती आरती तेरी ......
मोक्ष- प्रदायनी 
जीवनदायनी 
 डुबकियाँ -तर्पण 
सब तुझपे अर्पन ....
नगरों को सजाती
 गावों कों बसाती 
पेड़ -पौधों को सीचती 
सब कुछ समेटती .......
जब रुख करती 
सागर ओर 
अपने संपूर्ण अस्तित्व को 
समाहित करती सागर में 
 विलुप्त और रंग जाती
अपना लेता है सागर 
एक नही कई 
कई नदियों कों 
बनके गंगा - सागर ......
.....वंदना दुबे .......


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