Thursday 11 April 2013


ख्वाइशों का कारवां
फ़िर गुजरा मेरे मन में
अचानक बैठे - बैठे
यादों के काफ़िले से .....
खुल गये बंद झरोके
झिलमिलाती सी रोशनी झिरियों से
उद्वलित सी तुम्हारी महकती बातें
चेतन मन पर फ़िर डोलती
हौले से रूह को चीरती
सासों के अंदर उथल - पुथल
लहू की उष्णता
गुमनाम जिन्दगी में
तुम्हारा अचानक ख्वाबों में
दस्तक देना .....
एक लम्बे अंतराल बाद
अपने को प्रफुल्लित पाया मैंने
देखो कितनी बदल गयी जिन्दगी
इस मोड़ पर
और खिलखिलाती रही घंटों में .....

वंदना दुबे ......

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