वसुधा के रंग अनेक
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वैशाख की तपिश में
पीत हुए पात - पल्लव
बड़े दिवस हुये
सिकुड़ गयीं निशायें ----
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कुहू-कुहू कोयलिया करती
इठलाती फिरती अमुआ
की डाल - डाल पर
मालती के पुष्प-गुच्छ
सुंदरता देते और देते झुकने का सन्देश ------
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तारुण्य आया
अमलतास (स्वर्णपुष्पी ) पर
मादक हुआ वन - उपवन
कोरोना -काल में
सिंदूरी परिधान में
गुल मोहर भी मुस्काया -----
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लगने- लगा मुझे
जलती उमस भरी गरमी में
कोई ठंडी हवा का झोंका
नन्ही सावन की बूंदों सा
टपका माथे पर,
भीगा मन मेरा भी
देख "वसुधा के रंग अनेक" ~~~
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