Monday 3 February 2014


ओ मनहर , !!!

सागर के ज्वार सी
उत्तुंग लहरों सी
तुमसे मिलने की चाह
क्षण - क्षण 
रोमांचित कर जाती मुझे !!!

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वैदूर्य मणि
सा ललाट क्षण - क्षण
अपनी ओर
आकर्षित करता है मुझे ,
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राजीव लोचन
तुम्हारे देख
युगों - युगों तक
उनमें समाहित होने
की लालसा
अवश ,अबोल , आकंठ
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व्यापक विपुल वक्ष
पर सर रख
जन्म - जन्म
के सान्निध्य की
परम चाह !!!

** वंदना दुबे **
 
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