Monday 3 February 2014


हमारा जीवन भी फूलों और वृक्षों सदृश्य होता तो कितना सुन्दर होता जो जीवन पर्यन्त खिलखिलाते हुए खुशबू बिखेरते हैं। सघन छाया , सुगंध और निर्मलता बाटते हैं। मुझे पतझड़ बिलकुल पसंद नही जो पत्तों को पेड़ों से अलग करती है , पत्तो की फैली हुयी सघन चादर वनों में देखकर अत्यंत दुःख होता है। आत्मा से आवाज़ निकलती है हे पर्ण ! हे कोमल ! मुझ जैसे जाने कितनो को तुमने अपनी नन्ही सी छाँह दी है। तुम्हारा जीवन सार्थक और स्वर्ग में तुम्हारा स्थान सुरक्षित। पुष्पों की भी निराली दुनिया उन्हें, खिलखिलाते हुए देखने का अपना अलग आनंद। उन्हें उपभोग ( तोडना , गुथना , माला , सेज सजाना ) करने में नही ...... सुगंध की तृष्णा में एक बार फूल तोड़ने पर बारम्बार मन होगा और अपहरण की लालसा प्रबल होगी मेरा बस चले तो चार दिन में मुरझाने वाले पुष्पों को फिर से प्रफुल्लित कर दूँ , नवजीवन दे दूँ , पर तोड़ूं कभी नही।

Vandana Dubey
 
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