जब सुबह सुहानी होती है
परिन्दों की कतारे
अम्बर संजोती है ,
सिन्दूरी किरणें
तरंगिणी को अलंकृत करती है ,,,,,,
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तन है गीला
मन है सूखा
मैं कंकाल सा तरु
सलिलमय हूँ ,,,,,,
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फ़िर भी
अंतरमन तक प्यासा
छिन्न - भिन्न
अंग - अंग
अस्तित्व विहीन निर्जीव सदृश्य ,,,,,,
वंदना दुबे
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