Wednesday 17 July 2013


कचनार भर -भर फूली
डालियाँ फिर झूली
गुलाबी पंखुरियाँ फैली
ढलते सूरज की मद्धम किरने
दैदीप्यमान हो रही तुम पर
कमसिन -कमसिन सी
बरबस खीचती हुयी सी
सारी खुशियाँ लिपटाई सी
ख़ुशबू फैलायी सी
कनक बरसायी सी
अप्रतिम - अतभुत सुन्दरता
बिखरायी सी
मैं तो बस अपलक निहारती सी
रह जाती हूँ तुम्हें
बस यही आकांक्षा
फूल बनू हर जीवन में
बिना चाह खुशियाँ बिखराऊं !!!!
------वंदना दुब
Photo: कचनार  भर -भर  फूली 
  डालियाँ  फिर झूली 
गुलाबी पंखुरियाँ फैली 
ढलते सूरज की मद्धम किरने 
दैदीप्यमान हो रही तुम पर 
कमसिन -कमसिन सी 
बरबस खीचती  हुयी सी 
सारी  खुशियाँ लिपटाई सी 
ख़ुशबू  फैलायी  सी 
कनक बरसायी सी 
अप्रतिम - अतभुत  सुन्दरता 
बिखरायी सी 
मैं तो बस अपलक निहारती सी 
रह जाती हूँ तुम्हें
बस यही आकांक्षा 
फूल बनू  हर जीवन में 
बिना चाह  खुशियाँ बिखराऊं  !!!!   
------वंदना दुबे ---

No comments:

Post a Comment