ओ अजनबी !!!
कौन हो ???
उद्बुध्द क्षितिज की काली घटा में ,
तुम चुपके चुपके
पल - पल
हौले - हौले
चित्तभ से
मधुर - मधुरस से
नयनों के रास्ते
दिल में उतरते चले गये....
ये अजनबी !!!
रातरानी जूही से
मेरी हर निशा को
ख़ुशबुओ से भरते चले गये .....
तुम पाषाण से शख्त नज़र आते हो
पर गुफ्तगू से पिघलते हो
ओ अजनबी !!!
सुबह के प्रथम प्रहर में
तुम्हारा अविरल सन्देश
अलौकिक अनूठा
चित्तज्ञ प्रेम
पूरे दिवस ताजगी उष्मा से
लबालब कर देता मुझे ........
ओ अजनबी !!!
बताओ कौन हो ???
क्या मेरे सहचर ??
हमदम !!!
हमराज हो !!!
तुम महामना हो
महाभागी
महाप्रज हो
जीने का नया अंदाज़
तुम मेरे सुर और साज हो
पलकों में भर लूंगी
मैं दूर न जाने दूंगी मैं
जीवन सारा जी लूंगी...
वंदना दुबे .....
कौन हो ???
उद्बुध्द क्षितिज की काली घटा में ,
तुम चुपके चुपके
पल - पल
हौले - हौले
चित्तभ से
मधुर - मधुरस से
नयनों के रास्ते
दिल में उतरते चले गये....
ये अजनबी !!!
रातरानी जूही से
मेरी हर निशा को
ख़ुशबुओ से भरते चले गये .....
तुम पाषाण से शख्त नज़र आते हो
पर गुफ्तगू से पिघलते हो
ओ अजनबी !!!
सुबह के प्रथम प्रहर में
तुम्हारा अविरल सन्देश
अलौकिक अनूठा
चित्तज्ञ प्रेम
पूरे दिवस ताजगी उष्मा से
लबालब कर देता मुझे ........
ओ अजनबी !!!
बताओ कौन हो ???
क्या मेरे सहचर ??
हमदम !!!
हमराज हो !!!
तुम महामना हो
महाभागी
महाप्रज हो
जीने का नया अंदाज़
तुम मेरे सुर और साज हो
पलकों में भर लूंगी
मैं दूर न जाने दूंगी मैं
जीवन सारा जी लूंगी...
वंदना दुबे .....
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