Wednesday 17 July 2013


एक बिहान से तेरी बातें ,
एक बिहान से तेरी यादें ,
हमें तुम तक ले जाती है
पर वहां .....
ऊँचे हिम श्रंग शैल , सरिता तट , स्वर्णिम रश्मियाँ , उगता उदय ,परिंदों की कतारें ऊँचे देवदार बाँह फैलाये और वो बड़ा सा पाषाण जिस पर बैठकर हमने सालों गुजारे थे। ... सब कुछ वैसे ही .... बस तुम नही हो "मनहर ".... है बस एक मौन अनुभूति .....
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