Wednesday 17 July 2013


घन घनन - घनक
घनगरज - चमकत - कड़कत
घुमड़ - घुमड़
घिर - घिर घिरे घनरस
घनकाल की घनघोर रुत
घिर आयी .....
****
प्रेम है ये नभ का भू से
किलक - किलक बूंदे
सम्मद - सामोद करती
विस्तृत धरा को .....
****
चहकी चंचला वसुधा
खिलखिलायी ......
हरियाली चहुँओर छायी
वन में भी मंगल छाया
कोयल मोर पपीहा गाये
नाचे करत कलरव - कोलाहल
मधुरं - मधुरं ताने सुनाये ....
****
वसुंधरा में यौवन छाया
घनी नीलिमा अम्बर में
क्षतिज हुआ सतरंगी
आँगन में तुलसी बौरायी
शीतल समीर सानंद समायी ......
***.
रागवंत और रामलता सा
बूंदों का ये प्यार घना सा
धरती और अम्बर का नाता
सबको करना सिखाता
सावन सबको है हर्षाता .
Photo: घन घनन - घनक 
घनगरज - चमकत - कड़कत 
घुमड़ - घुमड़ 
घिर - घिर घिरे घनरस 
घनकाल की घनघोर रुत 
घिर आयी .....
****
प्रेम है ये नभ का भू से 
किलक - किलक बूंदे 
सम्मद - सामोद करती 
विस्तृत धरा को .....
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चहकी चंचला वसुधा 
खिलखिलायी ...... 
हरियाली चहुँओर छायी 
वन में भी मंगल छाया 
कोयल मोर पपीहा गाये 
नाचे करत कलरव - कोलाहल 
मधुरं - मधुरं ताने सुनाये ....
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वसुंधरा में यौवन छाया 
घनी नीलिमा अम्बर में 
क्षतिज हुआ सतरंगी 
आँगन में तुलसी बौरायी 
शीतल समीर सानंद समायी ......
***.
रागवंत और रामलता सा 
बूंदों का ये प्यार घना सा 
धरती और अम्बर का नाता 
सबको करना  सिखाता 
सावन सबको है हर्षाता .



सम्मद =  आमोद  , हर्ष 
सामोद  = आनंद युक्त 
घनरस  = वर्षा की बूंदे 
घनकाल = वर्षा ऋतू
रामवंत  = कामदेव 
रामलता  = रति4

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