Wednesday 17 July 2013


चलो मनहर चलो !!!
गहन वन में ,
गगन आँगन में
तरुवर की छाया में
पलाश के बिछौने में
चलो मनहर चलो !!!
***
देवदार के कुंजो में ,
हिमतुंग शिखरों में
शीतल कटीली फिजाओं में ,
उबर -खाबर पगडण्डी में
चलो मनहर चलो !!!
***
पथरीली नदियाँ निहारेंगे ,
तुम संग हाथों में हाथ लिये
फुदकते हुये पार करेंगे
हिमजल तुम पर बरसाएंगे
चलो मनहर चलो !!!
***
देखो !!!
प्रकृति प्रबुद्ध होने लगी ,
वनस्पतियाँ अंगराई लेने लगी
बिखराया प्रफुल्ल सुमन
चहुंओर .......
अपलक नयन दर्शन को आतुर
चलो मनहर चलो !!!
***
इस अप्रतिम बेला में
अलसाये से तरु भी भीगे
रक्ताभ आभा लिये नव पल्लव
पुलकित -पुलकित !!
श्रंगार की चमक
बिखर आयी समूचे
वनमंडल में ......
चलो मनहर चलो !!
Photo: चलो मनहर चलो !!!
गहन वन में ,
गगन आँगन में 
तरुवर की छाया में
पलाश के बिछौने में 
चलो मनहर चलो !!!
***
देवदार के कुंजो में ,
हिमतुंग शिखरों में 
शीतल कटीली फिजाओं में ,
उबर -खाबर पगडण्डी में 
चलो मनहर चलो !!!
***
पथरीली नदियाँ निहारेंगे ,
तुम संग हाथों में हाथ लिये 
फुदकते हुये पार करेंगे 
हिमजल तुम पर बरसाएंगे 
चलो मनहर चलो !!!
***
देखो !!! 
प्रकृति प्रबुद्ध होने लगी ,
वनस्पतियाँ अंगराई लेने लगी 
बिखराया प्रफुल्ल सुमन 
चहुंओर .......
अपलक नयन दर्शन को आतुर 
चलो मनहर चलो !!!
***
इस अप्रतिम बेला में 
अलसाये से तरु भी भीगे 
रक्ताभ आभा लिये नव पल्लव 
पुलकित -पुलकित !! 
श्रंगार की चमक 
बिखर आयी समूचे 
वनमंडल में ......
चलो मनहर चलो !!!
Photo

मना लो मुझे !!!

" कहना मान लो मनहर !!!
मुझे मना लो
मै ज़रा जिद्दी हूँ
अकडू हूं ,
अधीर हूँ
अदक्ष हूँ
गर बिगड़ गयी ???
अकड़ गयी
अनुरत न रही
अपर्णा बन गयी
चली गयी
तो सोच लो !!!
कौन किसे
मनायेगा
समझाएगा
निष्टुर
निर्मोही
निर्णेक हो मनहर
कुछ तो कहो
इतना हट भी
अच्छा नहीं
मुझे भान है
तुम आओगे
मकरंद घोल से
अपनी मीठी रसना से
मुझे मनाओगे "
-------वंदना दुबे ---
11


घन घनन - घनक
घनगरज - चमकत - कड़कत
घुमड़ - घुमड़
घिर - घिर घिरे घनरस
घनकाल की घनघोर रुत
घिर आयी .....
****
प्रेम है ये नभ का भू से
किलक - किलक बूंदे
सम्मद - सामोद करती
विस्तृत धरा को .....
****
चहकी चंचला वसुधा
खिलखिलायी ......
हरियाली चहुँओर छायी
वन में भी मंगल छाया
कोयल मोर पपीहा गाये
नाचे करत कलरव - कोलाहल
मधुरं - मधुरं ताने सुनाये ....
****
वसुंधरा में यौवन छाया
घनी नीलिमा अम्बर में
क्षतिज हुआ सतरंगी
आँगन में तुलसी बौरायी
शीतल समीर सानंद समायी ......
***.
रागवंत और रामलता सा
बूंदों का ये प्यार घना सा
धरती और अम्बर का नाता
सबको करना सिखाता
सावन सबको है हर्षाता .
Photo: घन घनन - घनक 
घनगरज - चमकत - कड़कत 
घुमड़ - घुमड़ 
घिर - घिर घिरे घनरस 
घनकाल की घनघोर रुत 
घिर आयी .....
****
प्रेम है ये नभ का भू से 
किलक - किलक बूंदे 
सम्मद - सामोद करती 
विस्तृत धरा को .....
****
चहकी चंचला वसुधा 
खिलखिलायी ...... 
हरियाली चहुँओर छायी 
वन में भी मंगल छाया 
कोयल मोर पपीहा गाये 
नाचे करत कलरव - कोलाहल 
मधुरं - मधुरं ताने सुनाये ....
****
वसुंधरा में यौवन छाया 
घनी नीलिमा अम्बर में 
क्षतिज हुआ सतरंगी 
आँगन में तुलसी बौरायी 
शीतल समीर सानंद समायी ......
***.
रागवंत और रामलता सा 
बूंदों का ये प्यार घना सा 
धरती और अम्बर का नाता 
सबको करना  सिखाता 
सावन सबको है हर्षाता .



सम्मद =  आमोद  , हर्ष 
सामोद  = आनंद युक्त 
घनरस  = वर्षा की बूंदे 
घनकाल = वर्षा ऋतू
रामवंत  = कामदेव 
रामलता  = रति4

एक बिहान से तेरी बातें ,
एक बिहान से तेरी यादें ,
हमें तुम तक ले जाती है
पर वहां .....
ऊँचे हिम श्रंग शैल , सरिता तट , स्वर्णिम रश्मियाँ , उगता उदय ,परिंदों की कतारें ऊँचे देवदार बाँह फैलाये और वो बड़ा सा पाषाण जिस पर बैठकर हमने सालों गुजारे थे। ... सब कुछ वैसे ही .... बस तुम नही हो "मनहर ".... है बस एक मौन अनुभूति .....
 — 

ओ अजनबी !!!
कौन हो ???

उद्बुध्द क्षितिज की काली घटा में ,
तुम चुपके चुपके
पल - पल
हौले - हौले
चित्तभ से
मधुर - मधुरस से
नयनों के रास्ते
दिल में उतरते चले गये....
ये अजनबी !!!

रातरानी जूही से
मेरी हर निशा को
ख़ुशबुओ से भरते चले गये .....
तुम पाषाण से शख्त नज़र आते हो
पर गुफ्तगू से पिघलते हो
ओ अजनबी !!!

सुबह के प्रथम प्रहर में
तुम्हारा अविरल सन्देश
अलौकिक अनूठा
चित्तज्ञ प्रेम
पूरे दिवस ताजगी उष्मा से
लबालब कर देता मुझे ........
ओ अजनबी !!!
बताओ कौन हो ???

क्या मेरे सहचर ??
हमदम !!!
हमराज हो !!!

तुम महामना हो
महाभागी
महाप्रज हो
जीने का नया अंदाज़
तुम मेरे सुर और साज हो
पलकों में भर लूंगी
मैं दूर न जाने दूंगी मैं
जीवन सारा जी लूंगी...
वंदना दुबे .....
1

कचनार भर -भर फूली
डालियाँ फिर झूली
गुलाबी पंखुरियाँ फैली
ढलते सूरज की मद्धम किरने
दैदीप्यमान हो रही तुम पर
कमसिन -कमसिन सी
बरबस खीचती हुयी सी
सारी खुशियाँ लिपटाई सी
ख़ुशबू फैलायी सी
कनक बरसायी सी
अप्रतिम - अतभुत सुन्दरता
बिखरायी सी
मैं तो बस अपलक निहारती सी
रह जाती हूँ तुम्हें
बस यही आकांक्षा
फूल बनू हर जीवन में
बिना चाह खुशियाँ बिखराऊं !!!!
------वंदना दुब
Photo: कचनार  भर -भर  फूली 
  डालियाँ  फिर झूली 
गुलाबी पंखुरियाँ फैली 
ढलते सूरज की मद्धम किरने 
दैदीप्यमान हो रही तुम पर 
कमसिन -कमसिन सी 
बरबस खीचती  हुयी सी 
सारी  खुशियाँ लिपटाई सी 
ख़ुशबू  फैलायी  सी 
कनक बरसायी सी 
अप्रतिम - अतभुत  सुन्दरता 
बिखरायी सी 
मैं तो बस अपलक निहारती सी 
रह जाती हूँ तुम्हें
बस यही आकांक्षा 
फूल बनू  हर जीवन में 
बिना चाह  खुशियाँ बिखराऊं  !!!!   
------वंदना दुबे ---

अँधेरा मुझे पसंद है
तुम्हें याद दिलाता है
एकांत मुझे पसंद है
तुम्हारे क़रीब ले आता है
और ये वसुधा तो जन्नत है
जो हमारे प्यार में मिठास घोलती है
वक़्त यूँ ही गुजर जाता है
वक़्त यूँ ही गुजर जाएगा .
Photo: अँधेरा मुझे पसंद है 
तुम्हें याद दिलाता है 
एकांत मुझे पसंद है
 तुम्हारे क़रीब ले आता है 
और ये वसुधा तो जन्नत है 
जो हमारे प्यार में मिठास घोलती है 
वक़्त यूँ ही गुजर जाता है 
वक़्त यूँ ही गुजर जाएगा ....
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