मेरी कविताएँ
Sunday 23 June 2013
कचनार से जो शुरू हुये सिलसिले ,
केक्टस में तब्दील हो गये ,,,,,
कभी कहते थे वो !!!
इस रात की फ़िर सहर न हो
तुम हमसे कभी खफ़ा न हो
धुआं - धुआं सी जिन्दगी हो गयी
नीर की बदली बह - बह चली ....
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