Sunday 16 June 2013

 रूप के बादल झम - झम बरसों ....


रूप के बादल झम - झम बरसों ....
सघन मेघ घिर - घिर ,
कारे - कारे !!!
घनघोर गरज - गरजत
घन बरसों ....
सूरज जा छिपा बदरी में ,
डोलती तरुवर की छाया
और भयी काली - काली
बिजुरी चमके काँपे जियरा
रूप के बादल झम - झम बरसों .....
कितना चंचल कितना शीतल ,
नन्ही बूंदों का मधुर स्पर्श
कितना वत्सल कितना सुंदर
सकल साँझ के पल्लवित पल
रूप के बादल झम - झम बरसों ......
ऊँचे शिखरों से थिरकती ,
सहस्त्र धाराये आलिंगन करती
कल - कल करके नांद सुनाती
नर्तन करती सरिता बनती ,
गाये राग मल्लार !!
रूप के बादल झम - झम बरसों ......
तन है गीरा मन है सूखा ,
घोल दो मेरे नवल स्वर में
" यमन " के तानें .....
तुम आकर प्रियवर .....
रूप के बादल झम - झम बरसों ......
अपलक नयन दर्शन को आतुर ,
पुलक स्पर्श को मन है व्याकुल
चित्त धीर - अधीर है आजाओ
चपल - चपल संग - संग !!!
शोख रंग फ़िर इन्द्रधनुषी
विहंगम दृश्य निहारेंगे ......
रूप के बादल झम - झम बरसों ......

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