मेरी कविताएँ
Thursday 17 April 2014
फ़िर वही कुहासा
फिर थर -थर थरथराई धरा
बसंत का गमन होने को है
लगता है शिशिर ने दस्तक दी
मौसम ने ली फिर अंगराई !!!
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