मेरी कविताएँ
Thursday 17 April 2014
सिंदूरी सूरज
सुबह - सुबह
तुम सदृश्य
अपूर्व सौंदर्य भरपूर
वही नूर
वही गुरुर
हमसे कितनी दूर
जैसे तुम
सुदूर~~~~
© --
वंदना दुबे
—
5
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