Monday 24 August 2015

कारे-कारे बादल
  नभ पर छाये
बन कर चादर ~~~ !

दूर कहीं
क्षितिज पर
इन्द्रधनुष ने
पर फैलाये ~~~ !

घन -रस की मीठी फुहार
आ गयी बरखा बहार ~~
बरगद के झूले
हमने झूले
खेतों की हरीतिमा
देख
नैन मेरे भर आये ~~ !

ये" श्रावण"
कभी न जाये
गोधूलि की बेला में
हम मंद -मंद मुस्काये
हम मंद - मंद मुस्काये ~~~ !!!

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