Sunday 23 August 2015

जीवन की लम्बी डगर पर अति- संवेदनशील होना कई बार हमें आहत करता है ... हम भाव-विभोर से चकित रह जाते हैं....... एकांत और अकेलेपन को ही अपना साथी बनाने की कोशिश करते हैं...... प्रकृति की गोद उसका सतरंगी परिवेश और पाखियों का कलरव हमें जीवंत और प्रफुल्लित बनाये रखता है।
चल कहीं दूर .....
मन बावरा 
फिर उदास :(((
चल कही दूर .......
जहाँ कोई न हो
कोई अपना न हो
फिर हम दुखी न हों
चल कहीं दूर .....
अपनों से छलना
मन का टूटना
सपनों का बिखरना
विश्वास पर न खरा उतरना
चल कही दूर .....
भाव - विभोर मन
उल्लास गुम
गुमसुम हम
चल कहीं दूर ......
हम परिंदों से मसरूफ़ क्यूँ नहीं
हम नदी से अल्लहड़ क्यूँ नहीं
हम पवन से चंचल क्यूँ नहीं
चल कहीं दूर ...
चल तू
सुनसान रातों में
सितारों की छाँव में
सिन्दूरी लालिमा में
सरिता तट में
वीरान कानन में
चल कहीं दूर ~~~~~

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