फिर सावन का आगमन
श्यामल-श्यामल हुआ गगन
घनरस की धुन गुन-गुन ------
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बूंदों की अपनी शैली
अलबेली सी
अपना राग
अपना आलाप
कभी विलम्बित
मध्य
तो कभी द्रुत लय सा --------
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ऋतुराग मेघ का
छेड़े मन के तार
कहीं अतिवेग
तो रुनझुन भी
लहरों ने पायल खनकायी
सृष्टि शिल्पित हुयी
सजीले सावन में
सावन का आगमन
प्रिय से होगा मिलन -------
वन्दना दुबे
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