Monday 24 August 2015

कारे-कारे बादल
  नभ पर छाये
बन कर चादर ~~~ !

दूर कहीं
क्षितिज पर
इन्द्रधनुष ने
पर फैलाये ~~~ !

घन -रस की मीठी फुहार
आ गयी बरखा बहार ~~
बरगद के झूले
हमने झूले
खेतों की हरीतिमा
देख
नैन मेरे भर आये ~~ !

ये" श्रावण"
कभी न जाये
गोधूलि की बेला में
हम मंद -मंद मुस्काये
हम मंद - मंद मुस्काये ~~~ !!!

Sunday 23 August 2015

वो सावन 
का 
नम - नम 
सा अहसास 
भिगो गया "मन"
के किसी कोने को
लाल डोरियाँ फ़िर छलछला
उठी ;;;;;;;;
कोई जान भी ना पाया
नैन बारिश से गीले
या "अश्रु " से ........... !!!
जीवन की लम्बी डगर पर अति- संवेदनशील होना कई बार हमें आहत करता है ... हम भाव-विभोर से चकित रह जाते हैं....... एकांत और अकेलेपन को ही अपना साथी बनाने की कोशिश करते हैं...... प्रकृति की गोद उसका सतरंगी परिवेश और पाखियों का कलरव हमें जीवंत और प्रफुल्लित बनाये रखता है।
चल कहीं दूर .....
मन बावरा 
फिर उदास :(((
चल कही दूर .......
जहाँ कोई न हो
कोई अपना न हो
फिर हम दुखी न हों
चल कहीं दूर .....
अपनों से छलना
मन का टूटना
सपनों का बिखरना
विश्वास पर न खरा उतरना
चल कही दूर .....
भाव - विभोर मन
उल्लास गुम
गुमसुम हम
चल कहीं दूर ......
हम परिंदों से मसरूफ़ क्यूँ नहीं
हम नदी से अल्लहड़ क्यूँ नहीं
हम पवन से चंचल क्यूँ नहीं
चल कहीं दूर ...
चल तू
सुनसान रातों में
सितारों की छाँव में
सिन्दूरी लालिमा में
सरिता तट में
वीरान कानन में
चल कहीं दूर ~~~~~