Sunday 16 May 2021

 



चैत की दोपहरी

में बह रही
इन दिनों
निर्बाध हवायेँ ----
तपिश भरे दिनों में
चिलचिलाती पवन संग
फिर मुस्काई
आँगन में,
गुलमोहर कलियाँ
दूर तक फैला सिन्दूरी बिछौना
स्वप्निल सा आभास
निहारे अपलक नयन -----

वसुधा के रंग अनेक

 वसुधा के रंग  अनेक 




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वैशाख  की तपिश में 

पीत हुए पात - पल्लव 

बड़े दिवस  हुये

सिकुड़ गयीं निशायें ----

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कुहू-कुहू कोयलिया  करती 

इठलाती फिरती अमुआ 

की डाल - डाल  पर 

मालती  के पुष्प-गुच्छ 

सुंदरता देते  और देते  झुकने का सन्देश ------ 

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तारुण्य आया 

अमलतास (स्वर्णपुष्पी ) पर 

मादक हुआ वन - उपवन 

कोरोना -काल में 

सिंदूरी परिधान में 

गुल मोहर भी मुस्काया -----

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लगने- लगा मुझे 

जलती उमस भरी गरमी में 

कोई ठंडी हवा का झोंका  

नन्ही सावन की बूंदों सा 

टपका माथे पर,

भीगा मन मेरा भी 

देख "वसुधा के रंग अनेक"  ~~~