हम आत्मावलोकन करें तो पाएंगे कि हमारे जीवन की श्रेष्ठता और मधुरता हमारी नैतिक क्रियाओं ,विचारों और जीवन में आने वाले कठिन कार्यों की का मधुर राग है ।
बीते कल में हमने किन स्वरों का गान किया और आज हम क्या रोपित कर रहे हैं ,हममें कितनी सृजनता, कर्मठता, संवेदनशीलता, करुणा, विवेकशीलता और ताउम्र अन्वेषणशील बने रहने की प्रक्रिया हमें एक सुनहरे आगामी कल का रास्ता दिखाती हैं |
हमने कितने चेहरों पर खुशियाँ बिखेरी ......... तूलिका ने कितने नये रंग रचे ........... लगातार विकसित होना और प्रगतिशील बने रहना......... हममें नयी चेतना का संचार करता है । जिससे निश्चित ही एक "निर्मल आनंद "की प्राप्ति सुनिश्चित है ।
मानव को बस अपने नियम और मान्यताएं तय करने होते हैं ।
मानव को बस अपने नियम और मान्यताएं तय करने होते हैं ।
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