Saturday 29 November 2014

नयनन में रुक जाओ 
कुछ दिन !
फिर स्वप्न 
यदि 
हो भी जाओ तो
क्या !!!




तुम्हारे अल्फ़ाज़ 
रस घोलते हैं कानों में,
तुम्हारे सन्देश 
ऊष्मा से भर देते हैं, 
जिंदगी जैसे नया 
मोड़ ले लेती है
एक ताज़गी के साथ
हर सुबह ~~~~~ :))))

!! ~~ हेमंत ~~ !!

~~~~~~~

हेमंत ...,
पुनः आगमन तेरा
फिर
नवल रूप में
विस्तृत अवनि पर
स्वर्णिम लालिमा
प्रखर हो रही
प्राची के द्वार से
उदित और श्रृंगारित
कर रही प्रबुद्ध
प्रकृति को ....
बर्फीले गिरि भी
छलछलाते है तेरी
ऊष्मा से
हे
दिवाकर ~~~~~
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तंरगिणी तट
का शीतल सलिल छूकर ~~~~
पुलिन पर चमकती
ओस के कण - कण -------
मंद पवन सहला गयी
फ़िर मुझे !!!

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अनहद नाद
सघन कानन का
कलरव कोयल का
पपीहे की तान
नित् - दिन साँझ - सकारे
तरु भी बांह पसारे
पुलकित हो रहे
संग -संग हमारे ~~~~

वंदना दुबे ------
आसमान ने ओढ़ा
लिहाफ
श्वेत- बादलों का फिर,
 इन दिनों ~~~~
सुबह - सवेरे ~~~~
सूरज की अरुणाई
में भी नमी समायी
इन दिनों ~~~
जरा झाँककर -झरोखों
से देखा बाहर
गुलाबी धूप
गुनगुना रही है,  ♬♬♬♬♬♬

इन दिनों ~~~~~
जो तुम आ गए
करीब
खूबसूरत हो जायेगी
जिंदगी फिर
 इन दिनों ~~~~