Friday 29 March 2019

“नदी के घर”
नदी के घर नहीं होते
धाराप्रवाह -धरा की धमनियों सी
चिरकाल से
उछलती -कूदती ( नर्मदा )
बहती चली आ रही ------
हर बिहान
शीतलता बिखेरती
कल-कल ध्वनि से
नई हो जाती हैं -----
कितने नगर बसाये
घाट बनाये
पार कराये
कभी ना ठहरी
न थकी
बस चलती रही
कभी पुण्यसलिला
सदानीरा
आनंददायनी
मोक्षप्रदायनी
कहलायी-----
जन-जन की
डुबकियां
आकांक्षायें
पूरी करती रही
अविरल-अनवरत
बहती रही
बहती रही
कोई घर नहीं कोई ठिकाना नहीं
नदी के घर नहीं होते ------
~~वंदना दुबे~~