Sunday 16 April 2017

शिवपुत्री चिरकुंवारी "माँ रेवा" ( नर्म + दा =आनंददायनी) अमरकंटक से भई प्रगट अनुपम रूप निराला जन-जन चकित होये जाए रे....!
तेरा निर्मल -पावन सलिल, गांव -गांव से कानन -कानन कल-कल बहता जाए रे ...!
आनंददायनी, जीवनदायनी, अमृतप्रदायनी, मोक्ष प्रदायनी वेद -पुराण बताये रे ....!
जगत में प्राचीन काल से ही वसुधा सदैव पूज्यनीय रही है पूर्वज हर उन चीजों को पूजते थे, जिसे वह जीवन के लिये जरूरी मानते थे.. हमारी भारतीय संस्कृति में भी हम नदियों को माता और शिखरों को पिता समतुल्य मानते आये हैं |
मेरे बचपन के कुछ वर्ष "मंडला" में बीते पापा की पोस्टिंग थी वहां, जहां नर्मदा तीन और से घिरी हुयी है, मंडला का " हनुमान घाट" नितांत एकांत घनी अमराई से आच्छादित....... मेरा प्रिय स्थल था प्राथमिक शिक्षा मंडला में हुयी थी, आज भी चलचित्र से वे दिन मुझे कभी नही भूलते हैं ...........घाट पर घंटो पानी में पैर डालकर बैठना और अथाह , अविरल जल को अनवरत निहारना बचपन से आज तक पसंद है......... आज भी जब भी मंडला जाते हैं, “सहस्त्र धारा और हनुमानघाट “ जाना नहीं भूलती | पावन माँ नर्मदा के अद्भुत दर्शन से मस्तक श्रद्धा से झुक जाता है तब से ही एक गहरा लगाव उसके प्रति होता चला गया।
"कलकलनिनादिनि दुखनिवारिणि शांति दे माँ नर्मदे"
अमरकंटक से निकलने के बाद मंडला पहला बड़ा शहर जहां माँ नर्मदे विशाल रूप में अथाह जलराशि के साथ दृष्ट्रिगत होती हैं सबसे स्वच्छ जल भी उनका यहीं है , इसके बाद जबलपुर में " धुआँधार जलप्रपात" का विहंगम दृश्य......... ऊपर से नीचे देखने पर धवल-जल उबलता सा प्रतीत होता है, इतनी तीव्रता और वेग के साथ निर्मल जल ऊर्जा से भर देता है हमें .......ऊपर उठता धुँआ हमारे मस्तक के साथ-साथ अंतर्मन तक भिगो जाता है, देख सब हर्षित होते हैं |


नर्मदा जल में प्रवाहित लकड़ी एवं अस्थि कालांतर में पाषण रूप में परिवर्तित हो जाती थी नर्मदा अपने उदगम स्थान से लेकर समुद्र पर्यन्त उतर एवं दक्षिण दोनों तटों में,दोनों और सात मील तक धरा के अंदर ही अंदर प्रवाहित होती हैं , पृथ्वी के उपर तो वे मात्र दर्शनार्थ प्रवाहित होती हैं |
नर्मदा के "कंकड़ में शंकर" ऎसी मान्यता है नर्मदा में वर्ष में एक बार गंगा आदि समस्त नदियाँ स्वयं ही नर्मदा जी से मिलने आती हैं | नर्मदा राज राजेश्वरी हैं वे कहीं नहीं जाती हैं | " नर्मदे तत दर्शनाथ मुक्ति "
नर्मदा में समस्त तीर्थ वर्ष में एक बार नर्मदा के दर्शनार्थ स्वयं आते हैं | नर्मदा ही एक मात्र ऐसी देवी (नदी )हैं ,जो सदा हास्य मुद्रा में रहती है | आशुतोष (शिव ) ने ही उनका नाम "'नर्मदा " रखा था शिवपुत्री के अतिरिक्त " इला " नाम की शक्ति से भी सम्बोधित किया जाता है | नर्म = आनंद दा = देती रहो ( आनंदप्रदायनी )
असंख्य आस्थावान जनों को प्रत्यक्ष रूप से जीविका और आनन्द देने वाली नर्मदा के नाम से सबसे अधिक प्रसिद्ध है। नर्मदा की उत्पत्ति पुराणों के अनुसार भगवान शंकर की जटाओं से होने के कारण इनका नाम "जटाशंकरी" और "शिव पुत्री" के नाम से "भी विख्यात हैं |
"पुण्या कनखले गंगा, कुरुक्षेत्रे सरस्वती ग्रामे वा यदि वारण्ये, पुण्या सर्वत्र नर्मदा"
मत्स्यपुराण में नर्मदा की महिमा इस तरह वर्णित है -‘कनखल क्षेत्र में गंगा पवित्र है और कुरुक्षेत्र में सरस्वती। परन्तु गांव हो चाहे वन, नर्मदा सर्वत्र पवित्र है। यमुना का जल एक सप्ताह में, सरस्वती का तीन दिन में, गंगाजल उसी दिन और नर्मदा का जल उसी क्षण पवित्र कर देता है |
एक लोक गाथा के अनुसार नर्मदा और शोण भद्र की शादी होने वाली थी। विवाह मंडप में बैठने से ठीक एन वक्त पर नर्मदा को पता चला कि शोण भद्र की दिलचस्पी उसकी दासी (जुहिला) यह आदिवासी नदी मंडला के पास बहती है........ में अधिक है। विवाह मंडप से उठकर उनने आजीवन कुंवारी रहने का फैसला लिया भौगोलिक सत्य देखिए कि सचमुच नर्मदा भारतीय प्रायद्वीप की दो प्रमुख नदियों गंगा और गोदावरी से विपरीत दिशा में बहती है यानी पूर्व से पश्चिम की ओर जो इस कहानी को सत्य साबित करती है |

एक दूसरी कथा....... राक्षस सहस्त्र बाहु उन्हें अपने बस में करना चाहता था उनले बहाव को रोकना चाहता था, उनसे बचने के लिए वे "सहस्त्र धारा " बनकर निकल गयी और उसे शापित कर काला पाषाण बना दिया ये दर्शनीय स्थल " सहत्रधारा " के नाम से विख्यात है , राक्षस सहस्त्र बाहु भी काले पत्थर के रूप में विराजित हैं |

गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती। नर्मदा सिन्धु कावेरी जलेस्मिन सन्निधिं कुरु।। चिरकुंवारी नर्मदा .............
माघ मास के शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि को नर्मदा का आविर्भाव होने से प्रति वर्ष इस तिथि में नर्मदा जयन्ती बड़े धूमधाम से मनायी जाती है.। १३०० कि०मी० लम्बी धारा में एक साथ लाखों दीपक छोड़े जाते हैं तब एक स्वर्ग जैसा दृश्य दिखाई देता है। लाखों लोग श्रृद्धापूर्वक एकत्रित होकर "माँ रेवा" की आरती करते हैं.। होशंगाबाद जिसका पौराणिक नाम नर्मदापुरम् में नर्मदा जयन्ती का उत्सव अत्यन्त बृहद् स्तर पर आयोजित किया जाता है। सप्त सरिताओं की पवित्रता और स्नान की पावनता का बोध कराती है नर्मदा के उदगम अमरकण्टक से लेकर सागर संगम खम्बाद की खाड़ी तक असंख्य तीर्थ स्थल हैं।
माँ की महिमा और व्यापकता का यशोगान करना मेरा छोटा सा प्रयास है आप सब पढ़ें |
Vandana Dubey