Thursday 18 February 2016

अब आ भी जाओ ....!
नव पात -पुष्प
नव लय , नव गान
नवल कण्ठ , नयी तान 
तुम संग
बसंत "" का राग -आलाप
अब आ भी जाओ ....!
खोयी दिशायें
महकी बयारे
बासंती हवाएँ
खिलखिलाई धरा
अब आ भी जाओ ....!
अवनि भी मुस्कायी संग -संग
सरसों भी बौराई हम -संग
जीवन में आ गए हैं सत-रंग
बसन्ती ऋतु"" में हम भी मगन
अब आ भी जाओ ...!
सुगन्धित हुये क्षण -क्षण
झरनों का ये कल-कल
कभी न हो ओझल
मन में नयी उमंग
अब आ भी जाओ ....!
मैं निर्झर सी चंचल
इठलाती
नर्तन करती
और "तुम "
जलागार से 
ग़हन ,अछोर, सौम्य
पर समाहित तो तुम में
ही होना मुझे
और
यही मेरी
नियति भी ..............!!!